Saturday, February 13, 2010

सा रे गा माँ ध्वनित हुए

सा रे गा मा ध्वनित हुए, मेरा चंचल मन लहरा गया,
सोचा यह क्या दिया प्रभु ने, मझे इतना यह क्यों भा गया।
जब तार हृदये के छेड़ कर कल्पना की सरगम बजाई तो,
फिर जल थल अम्बर झूम उठे और हर कोई हैरत खा गया।
जब पहले पहल बनी दुनिया, दुनिया में कुछ भी हसीं न था,
वीणा वादिनी का वरदान यह, दुनिया को रंगीन बना गया।
मेरी दुनिया तो संगीत है, मेरा देवता मेरा गीत है,
मैंने की जो इसकी उपासना, मुझे क्या से क्या ये बना गया।
सा से सरे भारत वासियों
रे से रहो हमेशा साथ साथ,
गा से गाओ मिल कर आज ये,
मा से मन में है यही कामना,
प् से प्रेम की राह पर चलो,
धा स धैर्य कभी तुम छोडो न,
नि से न कभी तुन निराश हो,
सातों स्वरों की है यही प्रार्थना
सातों स्वरों की है यही प्रार्थना
सातों स्वरों की है यही प्रार्थना।

Friday, February 12, 2010

सा रे गा मा

"जब सा रे गा मा गाती हूँ, मन ही मन में मुस्काती हूँ,
मेरे स्वरों में ही भगवान् हैं, मैं इन्ही में सब कुछ पाती हूँ।
कभी
शुद्ध हवा में बैठूं जो, जब सारा जहां लगे प्यारा ,
तो शुद्ध हवा के झोंकों में, बिलावल राग बजाती हूँ।
जब
मन मेरा कुछ चंचल हो, जब मन में मची कोई हलचल हो,
तो देख के कुछ हसीं सपने, बिहाग को मैं गुनगुनाती हूँ।
जब
ग़मों का हो जाये साया, जब कोशिशें हो जाएँ जाया,
तो कोमल रे ध स्वरों वाले, मैं भैरव राग को गाती हूँ।
जब
मन चाहे कुछ सुनने को, मैं कहती हूँ उस कोयल से,
तू भी सुना कुछ तो सखी, मैं तुझको रोज़ सुनाती हूँ।"