"जब सा रे गा मा गाती हूँ, मन ही मन में मुस्काती हूँ,
मेरे स्वरों में ही भगवान् हैं, मैं इन्ही में सब कुछ पाती हूँ।
कभी शुद्ध हवा में बैठूं जो, जब सारा जहां लगे प्यारा ,
तो शुद्ध हवा के झोंकों में, बिलावल राग बजाती हूँ।
जब मन मेरा कुछ चंचल हो, जब मन में मची कोई हलचल हो,
तो देख के कुछ हसीं सपने, बिहाग को मैं गुनगुनाती हूँ।
जब ग़मों का हो जाये साया, जब कोशिशें हो जाएँ जाया,
तो कोमल रे ध स्वरों वाले, मैं भैरव राग को गाती हूँ।
जब मन चाहे कुछ सुनने को, मैं कहती हूँ उस कोयल से,
तू भी सुना कुछ तो सखी, मैं तुझको रोज़ सुनाती हूँ।"
bhaut sunder shabdo se saza blog hai apkaa....
ReplyDeleteaur sangeet me apka man ramta hai ye dikh raha hai
acha laga yaha aakar
aapne mera blog pasand kiya.. aapka bahut dhanyavad.
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