Sunday, June 6, 2010

मन की आन्दोलन संख्या (mann ki andolan sankheya) - Ritu Raj

                                       संगीत "मन की आवाज़!" क्या यह तथ्य सही है?  संगीत पवित्र है,  मन का आईना  है|  जीवन भी तो एक संगीत है|  परन्तु जीवन संगीत में एक ये सब कहने की बातें हैं|
                                       संगीत में एक तत्त्व है "आन्दोलन"| ध्वनी वही संगीतोपयोगी मानी जाती है जिसमे निश्चित आन्दोलन संख्या या आन्दोलन समय हो|
                                      "आन्दोलन" ऐसा क्रम है जिससे ध्वनी की तारता (उंचाई/ नीचाई) को निश्चित किया जाता है| जब किसी साज़  के  तार  को  छेड़ा  जाता है, तो तार  में  कम्पन  होता है|  कम्पन के दौरान तार कितनी बार  हिला  या  कितनी  देर तक हिला, इससे अपेक्षित स्वर की तारता को मापा जाता है| अतः आन्दोलन संख्या ही स्वर की तारता को निश्चित करती है|
                                      सोचिये! यदि यह आन्दोलन संख्या वाला नियम मानव मन पर भी लागू हो जाये तो कितना अच्छा हो| मानव मन को पहचानना कितना सरल हो जाये| किसी के दुःख को देख कर हमारे दिल में कितना  कम्पन  होता  है? मन के तार  कितनी  बार हिलते हैं? यदि ये पता चलने लगे तो अच्छे बुरे की पहचान कर पाना कितना आसान हो सकता है|  है ना?
                                     परन्तु आज के युग में तो मानव मन एक ऐसा साज़ बन चुका है, जिसके तारों पर जंग लग  गया  है,  ज्वारी अपनी जगह से हिल  चुकी है और खूंटियां जाम हो गई हैं जिसके कारण ये साज़ बेसुरे हो  चुके  हैं|  कुछेक साज़ 'गर  इन सबसे बचे भी हैं तो भ्रष्टाचार और महंगाई के चलते उनकी डांड  झुक  कर  टेढ़ी  हो  गई  हैं  जिसके  कारण  वह  अत्यंत  कोशिशों  के बावजूद भी अपेक्षित स्वर  नहीं  निकाल  पाते| कुछ कठोर मन तो केवल बेसुरे घन वाद्य ही बन  कर  रह  गए  हैं जिन पर प्रहार करने से केवल शोर ही उत्पन होता है|
                                     काश! कोई ऐसा साज़गर होता जो मानव मन के इस सुन्दर साज़ को दोबारा  मुरम्मत  कर के सुर में ला  पाता| जब तक ये साज़ सुरीला  व  रसमयी  नहीं होता, जीवन की ये स्वर साधना  सफल  नहीं  हो पाएगी, स्वर अपनी  तारता को नहीं पा सकेंगे और जीवन  रूपी  संगीत अधूरा ही रह जायेगा| ये  तभी  सम्भव  हो  पायेगा  जब  हम  अपने अपने  मन  के  साज़ खुद बा खुद सुर में लायेंगे|  तभी  संसार  के  सभी  मनो  की रागमाला सफल हो पायेगी|
                                      तो अपने अपने हृदय साज़ को सुर में लाने की कोशिश करेंगे न आप???

 - ऋतु राज, मल्सीयाँ (जालंधर)
   7 जून 2010  

7 comments:

  1. nice, our harmony of life is disturbed, music can heal that.

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  2. "कुछ कठोर मन तो केवल बेसुरे घन वाद्य ही बन कर रह गए हैं जिन पर प्रहार करने से केवल शोर ही उत्पन होता है|
    ...
    जब तक ये साज़ सुरीला व रसमयी नहीं होता, जीवन की ये स्वर साधना सफल नहीं हो पाएगी, स्वर अपनी तारता को नहीं पा सकेंगे और जीवन रूपी संगीत अधूरा ही रह जायेगा|"

    सुरीली सलाह अच्छी लगी

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  3. अरे और आगे भी तो लिखिये.
    आपकी लेखनी का यह विराम अल्प-विराम ही रहे और आप शीघ्र अगला आलेख लिखें.
    हमेँ आपका लिखा हुआ पढ़ने की अधीरता से कामना है.
    शुभकामनाएँ.
    :-)

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  4. अब सही है वर्ड वेरिफिकेशन हट गया है, धन्यवाद.

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  5. waah.....kya kahun....main to khud suron kaa saadhak hoon....aur khud ko bhi sur kee tarah surila banaye rakhnaa chaahataa hun....yah aalekh ek aur utprerak hai mere liye.....!!

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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