Thursday, July 8, 2010

धूप और छाया

क्या हुआ जो धूप सी गोरी नहीं,
छाया हूँ मैं.... ठंडक तो देती हूँ.|
तेरे मन की तपती भूमि को मैं,
अपनी साँसों से ही तो सींच देती हूँ |
माना कि उजला है धुप का दामन लेकिन,
मैं छाया हूँ, धूप को भी ढांप लेती हूँ |
जीवन सफ़र के दूर के राही को मैं,
कुछ पल के सुकून का तोहफा देती हूँ |
                      ऐ दोस्त तेरी हमसफ़र हमसाया हूँ मैं,
 तू उजले चेहरों को भले ही सराहना.......
मगर इस छाया की ठंडक और विनम्रता को,
कभी उनसे कमकर मत करारना......
मैं छाया हूँ... छाया ही रहूंगी......
तुम मेरे रहना और मुझे अपनी कह कर ही पुकारना \
             

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